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ना जाति की राजनीति करूंगा ना धर्म की राजनीति करूंगा :विनोद बांसल

Writer's picture: News Team LiveNews Team Live

जो अपने जीवन में कठिनाईयों से टकराते हैं वहीं विकास के पथ पर आगे बढ़ पाते है। ऐसी ही कठिनाईयों से गुजरा डबवाली शहर का एक शख्स जिसने बचपन से लेकर उधेड़ आयु तक एक ही सपना संजोया कि

[ ] राजनीतिक अपेक्षा का शिकार उसका शहर विकसित हो तो कैसे ?

[ ] यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिले तो आखिर कैसे मिले?


हम बात कर रहे हैं डबवाली के वार्ड 14 से तीन बार पार्षद बनने वाले कांग्रेस पार्टी की विचारधारा को आत्मसात करने वाले विनोद बांसल की। पार्षद रहते हुए उन्हें शहर का विकास करवाने के लिए भारी कठिनाईयों से जूझते हुए देखा। विनोद बांसल अग्निकांड के भयावह मंजर को याद करते हुए नम आंखों से कहते हैं कि

खुद ने पीड़ा सही है , इसलिये पीड़ितों के दर्द को जानता हूँ।

अग्रिकांड पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए घर बार छोडक़र कोर्ट कचहरियों के दर पर माथा रगड़ते हुए तो पूरे शहर ने ही नहीं बल्कि पूरे हरियाणा प्रदेश के लोगों ने देखा, जाना और समझा।

विनोद बांसल हर उस कठिनाई का सामना करने वाला शख्स है जो डबवाली शहर को स्मृद्ध व सुंदर देखना चाहता है। उनकी चाहत और उनके सपनों के पंखों को परवाज देने का वक्त अब शहर के लोगों के पास हैं। जनता जनार्दन चाहें तो अभी होने जा रहे नगर परिषद के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे इस कर्मठ व्यक्ति के हाथ में उस कलम रूपी ताकत को सौंप सकती हैं जिसे आधार बनाकर वे शहर को विकास और समृद्धि की डगर पर ले जा सकते हैं।

विनोद बांसल कहते हैं कि

ना जाति की राजनीति करूंगा ना धर्म की राजनीति करूंगा कैसे हो मेरे शहर का विकास मैं उस रणनीति की बात करूंगा।

विनोद बांसल शहर का वह चेहरा है तो राजनीति व जात पात से उपर उठकर शहर के विकास को तरजीह देने की बात कह रहे हैं। विनोद बांसल बड़े दुख भरे लहजे से कहते हैं कि डबवाली उपमंडल से निकले उप-प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अब उपमुख्यमंत्री ने डबवाली को केवल विकास के मामले में ही नहीं बल्कि हर मामले में अपेक्षित रखा। उनका कहना है कि -

ज़िन्दगी की आपाधापी में डबवाली उपमंडल से निकले उप-प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अब उपमुख्यमंत्री आगे निकलने की होड़ में तो जीत गए परन्तु मुरझा गया विकास के अभाव में हमारा प्यारा शहर डबवाली ।

वे चाहते तो डबवाली को हरियाणा प्रदेश का नम्बर वन शहर बना सकते थे लेकिन उनकी धन लोलुपता ने ऐसा होने नहीं दिया। आज भी धन लोलुपता उनके दिलों दिमाग पर हॉवी है।

जनता विकास की बाट जोह रही है। केवल और केेवल एक बार जनता अगर मेरे चुनाव निशान बस का बटन दबा दे फिर देखना कि विकास कैसे सरपट दौड़ता है। विकास करवाने की हर तकनीक की जानकारी के ज्ञाता हैं विनोद बांसल। शहर की जनता से उनके नाम पर विश्वास की मोहर लगाने का निवेदन किया।

विनोद बांसल का सपना है कि डबवाली में अग्नि कांड स्मारक को राज्य स्तरीय दर्जा दिया जाना चाहिए। वहीं फायर सेफ्टी इंस्टीट्यूट बनवाने का काम यदि कोई कर रहा है तो वह भी केवल विनोद बांसल ही है। बेशक कमेटी में बल कांग्रेस का था लेकिन जो प्रस्ताव डाले जाते थे उन प्रस्तावों पर संज्ञान तो सरकार को लेना था। सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि -


सियासत की रंगत में न डूबो इतना,

कि वीरों की शहादत भी नज़र न आये ।

ज़रा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को,

गर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आये ।


सरकार बार-बार प्रस्तावों को ठुकराते रही स्थिति को बदतर करके रख दिया। खैर अब फिर पूरे बहुमत के साथ अवसर मिलने वाला है यह शहर की जनता ने ठाना है।

हकीकत होंगे विकास के हर वायदे वो कोई और हैं, झूठे हैं जिनके इरादे।

विनोद बांसल इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि झूठ की राजनीति और वायदों से उन्हें परहेज है। वह ओर लोग हैं जो केवल डबवाली रेलवे स्टेशन पर गाड़ी का ठहराव करवाने को भी अपनी विशेष उपलब्धि मानते हैं। झूठ और फरेब वाले वायदे करने से उन्हें नफरत है। सच की डगर कठिन तो हो सकती है लेकिन मंजिल पर पहुंचने को कोई रोक नहीं सकता। झूठ के बलबूते जो श्रेय लेते हैं ऐसे लोगो को वोट की चोट से घायल करना होगा। इस बात को जनता जनार्दन को समझना और सोचना होगा। भ्रष्टाचार को जन्म देने वाले सत्ता के लोलुपता में डूबे लोगों से बचना होगा। अब वो समय आ गया है। इसलिए विनोद बांसल को चुनाव आयोग ने निशान दिया है 'बस' का उस बस को ईमानदारी और निष्ठा से भरकर शहर की विकास भरी सडक़ों पर आगामी 19 जून को एक-एक मत बस के चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर दौड़ाना है ताकि शहर विकास और स्मृद्धि की ओर दौड़ सके। उन्होंने निंदा करने वालों व घटिया राजनीति करने वालों को कुछ इस तरह से जवाब दिया -


फ़दाली कर रहे हैं रोज निंदा , बात कुछ होगी

अकेले उड़ रहा है जो परिंदा , बात कुछ होगी

ठगी के दौर में बेईमानियों के, बीच रह के

किसी में अब भी है ईमान ज़िंदा, बात कुछ होगी।


मतदाताओं को सोचना और समझना होगा कि भ्रष्टचारियों को फिर से लूटने खसूटने का अवसर देना है या फिर ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठता के मार्ग पर चलकर शहर को खुशहाल बनाना हैै। सोचने का वक्त है सो सोचो।

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