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भाजपा को सता रहा बगावत का डर! इस बार टिकट बंटवारा नहीं आसान




हरियाणा


(स्पैशल डेस्क) :


भाजपा की प्रदेश इकाई में टिकटों के बंटवारे को लेकर असंतोष सार्वजनिक हो गया है। अनुशासित कैडर के रूप में जाने जानी वाली भाजपा के लिए इस बार टिकट बंटवारा आसान नहीं लग रहा है। कैप्टन अभिमन्यु, रामकुमार गौतम और सुनीता दुग्गल को जिन सीट से टिकट दिए जाने की चर्चाएं हैं वहां की भाजपा यूनिट के सदस्यों ने विरोध का मन बना लिया है और इस संबंध में इन इकाइयों ने एक ज्ञापन देकर पार्टी के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व को अपनी नाराजगी से अवगत करा दिया है। ज्ञापन में स्पष्ट कर दिया है कि स्थानीय नेताओं के स्थान पर बाहरी लोगों को चुनावी मैदान में उतारने से हारना पक्का है।

बता दें कि भाजपा की योजना पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु को नारनौंद से हिसार जिले की बरवाला सीट से चुनाव लड़ाने की चर्चा है। वहीं, जजपा के नारनौंद से विधायक रामकुमार गौतम भाजपा से जींद की सफीदों से टिकट मांग रहे हैं और सिरसा की पूर्व भाजपा सांसद सुनीता दुग्गल फतेहाबाद की रतिया विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहती है। लेकिन इन सीटों पर जो स्थानीय लोग सालों से पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता रहे हैं वे भाजपा के इस संभावित कदम से नाराज हैं। इसके चलते उन्होंने भाजपा को सावधान किया है कि मतदाता किसी भी नए चेहरे को स्वीकार नहीं करेंगे।

सफीदों इकाई ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा, राज्य पार्टी अध्यक्ष मोहन लाल बड़ोली और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बाहरी लोगों को मैदान में उतारने से जुड़ी हार के इतिहास के बारे में पत्र लिखकर जानकारी दी है। 

बरवाला इकाई ने धमकी दी कि अगर पार्टी ने पार्टी ने किसी बाहरी व्यक्ति को मैदान में उतारा तो ये प्रचार से बाहर हो जाएंगे। जाट प्रतिक्रिया से बचने के लिए कैप्टन अभिमन्यु नारनौंद से यहीं शिफ्ट होना चाहते हैं। जाट, जो नारनीद में मुख्य मतदाता है, इस बात से नाराज हैं कि उन्होंने किसानों के आदोलन का समर्थन नहीं किया। रतिया की भाजपा इकाई ने सुनीता दुग्गल को टिकट देने का विरोध किया है।

याद दिलाया चुनावी इतिहास

ज्ञापन में दावा किया गया है कि जजपा से अलग हो चुके गौतम को वर्ष 1991 में सफीदों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें सिर्फ 1500 वोट मिले थे। मौजूदा राज्यसभा सदस्य रामचंद्र जांगडा ने वर्ष 1987 में इस क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह प्रदेश में देवीलाल लहर के बावजूद हार गए थे। यहां से एक स्वतंत्र उम्मीदवार जीता था। वर्ष 2005 में कर्मबीर सैनी और वर्ष 2014 में दिवंगत केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बहन वंदना शर्मा भी सफीदों से हार गईं थीं। वर्ष 2019 में भी कई बाहरी लोग हार गए थे।


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