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हिंसक घटनाओं के पीड़ितों की मदद की बजाय वीडियो क्यों बनाने लगते हैं लोग? EXPERTS VIEW!


हाल में दिल्ली के सुंदर नगरी इलाके में तीन लोगों ने एक युवक की चाकू घोंपकर हत्या कर दी जबकि कई लोग इस घटना को देखते रहे और वीडियो बनाते रहे, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं आगे नहीं आया। दिल्ली से कई किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के एक गांव में एक युवती से सामूहिक बलात्कार किया गया, उसे निर्वस्त्र कर दो किलोमीटर तक चलाया गया, लेकिन लोग उसकी मदद के लिए आगे नहीं आए बल्कि वीडियो बनाते रहे। ये दोनों घटनाएं एक महीने के अंतराल पर हुई है। एक अक्टूबर को पुरानी रंजिश के चलते 21 वर्षीय मनीष की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई जबकि युवती के साथ बलात्कार और निर्वस्त्र कर पैदल चलाने की घटना एक सितंबर की है। इन दोनों ही घटनाओं के वीडियो बाद में सामने आए।



इन दोनों घटनाओं का आपस में कोई संबंध नहीं है, लेकिन ये घटनाएं एक सवाल खड़ा करती हैं कि लोग पीड़ितों की मदद करने के लिए आगे क्यों नहीं आए। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (एनआईएमएचएएनएस) में मनोविज्ञानी मनोज कुमार शर्मा इसे ‘बाईस्टैंडर इफेक्ट या बाईस्टैंडर उदासीनता' बताते हैं जो एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा कि इसके मुताबिक, जब अन्य लोग मौजूद होते हैं तो व्यक्ति द्वारा पीड़ित को सहायता की पेशकश करने की संभावना कम होती है, क्योंकि वहां और लोग होते हैं, इसलिए व्यक्ति पर कुछ करने का ज्यादा दबाव नहीं होता है। शर्मा ने कहा कि जब अन्य लोग प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, तो व्यक्ति को अक्सर लगता है कि यह इस बात का संकेत है कि घटना को लेकर प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है या उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में लोग क्या सही है यह तय करने के लिए अक्सर एक-दूसरे को देखते हैं



मुरादाबाद में महिला के साथ हुई घटना का वीडियो बनाना या दिल्ली में मनीष की हत्या का वीडियो बनाना, ऐसी सभी घटनाओं की याद दिलाता है जब लोगों ने इसी तरह के मामलों में पीड़ितों की मदद न करके वीडियो बनाने शुरू कर दिए थे। विशेषज्ञों के मुताबिक, सोशल मीडिया पर पहचान पाना और वीभत्स कृतों का प्रत्यक्ष रूप से गवाह बनाने की चाह ही लोगों को पीड़ित की वीडियो बनाने के लिए प्रेरित करती है। फोरेंसिक मनोवैज्ञानिक दीप्ति पुराणिक ने कहा कि लोगों के पास स्मार्टफोन आसानी से उपलब्ध हैं जिससे वे वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देते हैं ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा ‘लाइक्स' मिलें और वे प्रसिद्ध हों। पुराणिक ने पीटीआई-भाषा से कहा, “ लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा ‘लाइक्स' हासिल करने की प्रतिस्पर्धा है जिस वजह से वे यह भूल चुके हैं कि सही क्या है और गलत क्या है?” सोशल मीडिया पर इस तरह के वीडियो अपलोड करना भी पीड़िता को बोलने से रोकने का एक तरीका हो सकता है।



उन्होंने कहा, “ प्रौद्योगिकी के तौर पर उन्नत होने के बाद अपराधियों के लिए यह आसान हो गया है कि वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर पीड़ित से बदला लें सकें। यह निश्चित रूप से अपराधियों के रोग संबंधी लक्षणों को दर्शाता है जिन्हें अपने कृत्य का कोई पछतावा नहीं है।” पुराणिक ने कहा, “ हत्या और बलात्कार दो अलग-अलग तरह के अपराध हैं। हत्या में लोग इसकी हिंसक प्रकृति के कारण इससे अलग होना चाहते हैं, जबकि एक महिला के साथ बलात्कार किए जाने और निर्वस्त्र चलाने की बात आती है तो उन्हें लगता है कि वह इसकी हकदार है। वे खामोशी से खड़े रहने के अलावा, वे वीडियो भी बनाते हैं।” बलात्कार के विरुद्ध मुहिम चला रही कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि बलात्कार पीड़िता की पहचान को जाहिर नहीं करना होता है। उनके मुताबिक, सोशल मीडिया पर वीडियो साझा करते हुए घटना के बारे में अधिकारियों को बताया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “ नहीं तो आप पूरे कृत्य के सिर्फ एक सहयोगी हैं।”

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