Breaking News
top of page
Writer's pictureNews Team Live

16 अक्टूबर को होगी जांभाणी साहित्य ज्ञान परीक्षा, 5 सितंबर तक परीक्षा के लिए पंजीकरण


डबवाली

जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा जाम्भाणी साहित्य को आधार बनाकर बच्चों और तरुणों के लिए एक ज्ञान परीक्षा का आयोजन 16 अक्टूबर को किया जाएगा। इस परीक्षा के लिए पूरे देश में लगभग 550 परीक्षा केंद्रों की स्थापना की गई है और अब विद्यार्थियों के पंजीकरण का कार्य शुरू है, जिसकी अंतिम तिथि 5 सितंबर है। यह जानकारी देते हुए जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर के सिरसा जिला प्रभारी इन्द्रजीत बिश्नोई ने बताया कि पंजीकरण फॉर्म ऑनलाइन भरा जाना है जिसका लिंक सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर उपलब्ध है। परीक्षा के पाठ्यक्रम के रूप में एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गई है वह पुस्तक और उसकी पीडीएफ भी विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाई जा रही है। उन्होंने बताया कि अकादमी के अध्यक्ष आचार्य कृष्णानंदजी ऋषिकेश के सान्निध्य में परीक्षा आयोजन की केंद्रीय समिति के अलावा जिला, तहसील और केंद्र प्रभारियों के रूप में हजारों लोगों की टीम इस पुनीत कार्य में लगी हुई है। अधिक जानकारी लेने, पंजीकरण फॉर्म भरने, परीक्षा पुस्तक और अन्य जाम्भाणी साहित्य डाउनलोड करने के लिए अकादमी की वेबसाइट www.jambhani.com पर विजिट कर सकते हैं। उन्होंने सभी जिज्ञासु विद्यार्थियों, सुधी अभिभावकों, समाजसेवी महानुभावों से अपील की है कि वे इस सुअवसर का स्वयं भी लाभ उठाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें।

गुरु जांभोजी की शब्द वाणी से बना है जांभाणी साहित्य:

इंद्रजीत बिश्नोई ने जांभाणी साहित्य के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का उपदेश किसी पंथ, संप्रदाय, समाज विशेष के लिए नहीं था, उन्होंने अपने शब्दवाणी में जिज्ञासुओं को संबोधित करते हुए 'प्राणी' शब्द का प्रयोग किया है यानि यह उपदेश प्राणीमात्र के लिए है। उनका उपदेश जीने की युक्ति सिखाता है, आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग जीने का तरीका नहीं जानते, इस कारण उनका स्वयं का और वो जिस समाज में रहते हैं, उन दोनों का भला नहीं होता। जो जीना सीख लेता है उसकी मृत्यु भी सुधर जाती है यानि वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। गुरु जम्भेश्वर भगवान के उपदेश की एक और बहुत बड़ी विशेषता यह है की वह पर्यावरणीय चेतना से भरपूर है और आज विश्व को अपना अस्तित्व बचाने के लिए इस चेतना की अति आवश्यकता है। ऐसी ही वाणी उनके हुजुरी और परवर्ती संतों की है। गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी और बिश्नोई पंथ के इन संतों की वाणियों को ही जाम्भाणी साहित्य कहते हैं। इसी जाम्भाणी साहित्य को आधार बनाकर बच्चों व तरुणों के लिए ज्ञान परीक्षा का आयोजन जांभाणी साहित्य अकादमी द्वारा हर साल किया जाता है।



Comments


bottom of page