बहादुरगढ़ :
पंचायत चुनाव 30 सितंबर से पहले करवाने के दावों के बीच नए-नए समीकरणों से दावेदारों का सिरदर्द भी बढ़ रहा है। अब जिस तरह से पंचायत चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण की संभावना है, उससे तो माहौल फिर से बदलेगा। पिछले दिनों जब नगर निकायों के चुनाव हुए और उसमें पिछ़ड़ा वर्ग के लिए आरक्षण खत्म किया गया, उसके तुरंत बाद यह साफ किया गया था कि अब पंचायत चुनाव में भी पिछड़ा वर्ग का आरक्षण नहीं होगा।
इसके बाद जो सीटें पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित थी, उन पर सामान्य वर्ग के दावेदारों ने तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन अब फिर से माहौल बदल गया है। अब पिछड़ा वर्ग की संभावना प्रबल हो रही है। आरक्षण लागू हुआ तो जाहिर सी बात है कि कई जगहों पर सरपंच-पंच के अलावा पंचायत समिति में भी सीटें रिजर्व होंगी।
यानी फिर उन सीटों पर नए फिर से पिछड़ा वर्ग के दावेदार सामने आएंगे, जहां सामान्य वर्ग के दावेदार तैयारी करते रहे हैं। अभी यह तो साफ नहीं है कि जो सीटें पहले आरक्षित की गई थी, वहीं ज्यों की त्यों रहेगी या फिर नए सिर से ड्रा होगा, लेकिन पिछड़ा वर्ग का आरक्षण तय होने से माहौल भी बदलेगा और नए दावेदार भी मैदान में आएंगे।
कई बार बदल चुका है माहौल
पिछली पंचायतों का कार्यकाल फरवरी 2021 में पूरा हो गया था। तभी से चुनाव का इंतजार है। इस बीच में माहौल कई बार बदल चुका है। आम तौर पर जो नए दावेदार हाेते हैं, वे तत्कालीन प्रतिनिधियाें का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही खुद की दावेदारी जताते हुए प्रचार शुरू कर देते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ था। मगर इंतजार की भी इंतहा हो चुकी है। पंचायत चुनाव का मसला लंबे समय तक हाईकोर्ट में उलझा रहा।
अब एक तरफ सुप्रीम कोर्ट में भी अपील दायर हो रखी है तो दूसरी तरफ पिछड़ा वर्ग बोर्ड की ओर से भी रिपोर्ट सौंपी जानी है। ऐसे में देखों और इंतजार कराे वाली स्थिति है। पिछले डेढ़ साल के अंदर जब-जब चुनाव की घोषणा होती दिखी, तब-तब दावेदारों ने अघोषित प्रचार में जोर लगाया।
गांवों में पोस्टर-बैनर से दीवारें पाट दी गई। पिछले दिनों जब हाईकोर्ट ने चुनाव पर लगी रोक हटाई और ओबीसी का आरक्षण रद हुआ, उस दौरान फिर से पोस्टरों से दीवारें अट गई थी, लेकिन अब तो दावेदार चुनाव की घोषणा का ही इंतजार कर रहे हैं।
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